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Friday, July 27, 2012

भारतीय समाज में नारी की विडम्बना

तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन 
तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था ।
                                          --मजाज़ की कलम से 

यह तो सभी मानते है की लिखना एक अच्छी  विधा है , और सभी  लोगों से (जो पढना -लिखना जानते है ) उनसे यह उम्मीद की जाती है की वो पढ़ें और जिन मुद्दों पर उन की समझ बनती है, फिर चाहे वह पक्ष में बने या विपक्ष में उन्हें लिखना चाहिए । मेरे लिए लिखना इसलिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि  मै एक नारी हूँ ,और उससे भी ज्यादा मै  इस देश का एक हिस्सा हूँ । उस देश का हिस्सा जहाँ आये दिन दुनिया की आधी आबादी मानी  जाने वाली महिलाओं के साथ कुछ न कुछ गलत घट  रहा है ।हर तीसरे मिनट कुछ ऐसा घट रहा है जिससे पुरे विश्व में देश का सर शर्म से निचे झुक रहा है ।चिंता का विषय यह है की, जिस देश में नारी को देवी का दर्ज़ा देकर पूजा जाता है उसी देश में उसका इतना बुरा हाल आखिर क्यूँ ? क्या यह उन वहशियों की गलती है या फिर समाज या आखिरी तोहमद के रूप में सरकार की । खैर !गलती चाहे जिसकी भी हो सजा अन्तत  नारियों को ही मिल रही है ।सजा भी ऐसी जो ताउम्र शायद भुलाये न भूले ।
              अब तो अख़बार उठाने खबर पढने में भी डर लगता है की पता नहीं आज कौन सी सोनाली का चेहरा तेजाब से बिगड़ा होगा ,पता नहीं आज देश के किस हिस्से में गोहाटी या फिर राजस्थान जैसी शर्मिंदा करने वाली घटना घटी होगी ।आज दुःख है शर्मिंदगी है गुस्सा और खीझ है ।लेकिन यह गुस्सा और खीझ सिर्फ मर्दों तक ही सीमित  नहीं है ।आज यह गुस्सा उन औरतों से भी है जो समाज में ऊँचे कहे जाने वाले पदों पर आसीन है ,पर क्या वह इतनी ऊचाई  पर पहुच चुकी है की  मनुष्य होने के नाते उनसे जिस संवेदनाओ  की उम्मीद की जाती है वह उसे भी भूल चुकी है ।जींस पहनने से रोक देना या फिर यह सलाह देना की लड़कियों को अपने पहनावे पर ध्यान देना चाहिए ।इन वाहियात बातों  से अगर  ये घटनाएँ रूकती है तो नतीजन सोनाली जैसी घटना नहीं होनी चाहिए थी ।या फिर गुजरात जैसे दंगे में महिलाओं के साथ जो अमानवीयता हुई वह नहीं होनी चाहिए थी ।
           आज कुछ मुद्दों पर देश में जोरों से बहस चल रही है ।जिसमे अलका लांबा को गुवहाटी की पीडिता का नाम सार्वजनिक करना चाहिए था की नहीं ,क्या सोहांबरी  देवी (अध्यक्ष भारतीय महिला किसान सभा )को यह अधिकार है की वो यह फैसला लें की उनके यहाँ लड़कियां क्या पहनेगी और क्या नहीं ,या फिर राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष  ममता शर्मा द्वारा महिलाओं के पहनावे को लेकर की गयी टिप्पड़ी ।हम सभी इन मुद्दों पर इतना उलझ गए है की असली बात हमसे कही दूर छुट गई है ।हमें जरुरत यह समझने की है की ,आये दिन ऐसी घटनायें क्यों हो रही है ।इनके पीछे की राजनीती क्या है ।क्यों कानून समाज या सरकार इतनी लचर ,मजबूर या निक्कमी हो गई है की इस पर कोई रोक नहीं लगा पा  रही है ।अगर रेप कपड़ों की वजह से हो रहे हैं लोगो की बीमार मानसिकता की वजह से नहीं तो ,फिर दो साल की बच्ची के साथ रेप का मामला सामने नहीं आना चाहिए ,जबकि ऐसा एक नही बल्कि बहुत सारे मामले हमे और हमारी व्य्वाव्स्था तथा समाज को मुह चिढ़ा रहे है ।चलिए अगर एक पल के लिए इस बात को मान भी ले की रेप कपड़ो की वजह से होते है तो फिर ऐसी मानसिकता वाले व्यक्ति से तो उसकी अपनी माँ ,बहन ,बेटी भी सुरक्षित  नहीं हो सकती ।ये मामले इतने आसन नहीं है जितना की दिखते  है ।यह हैवानियत लड़कियों के पहनावा बदल लेने से नहीं रुकने वाली हमे अपने सोच को बदलने की जरुरत है ।हम खुद को मजबूत करें और हर उस छोटी से छोटी बात का विरोध करें जो गलत है ।
             ये जितने भी बयान आये हैं  वो महिलाओं को सुरक्षा नहीं बल्कि और असुरक्षा की तरफ धकेलते हैं ।यह तो वही बात हो गई कि पागल के सामने यह कहो की देखो वह पत्थर उठा कर मार न दे ।पागल को खबर नहीं थी पत्थर की लेकिन कहने से उसका ध्यान पत्थर पर चला गया ।ठीक इसी  तरह हम मुजरिमों को उनकी गलतियों का अहसास दिलाने की बजाय उनके हाँथ में पत्थर पकड़ाने  का काम कर रहे हैं ।उन्हें यह सिखा रहे है की जुर्म करो और उसकी सफाई ऐसे दो की लड़की ने कपडे सही नहीं पहने थे इसलिए मेरी कुंठित मर्दानगी जग गई और मैंने ऐसा किया ।शायद बयानबाजी करती इन महिलाओं को यह अहसास भी नहीं है की वो ऐसा करके अपना निजी स्वार्थ तो सिद्ध कर लेंगी ,लेकिन वे यह भूल जाती हैं की बकरी की माँ कब तक खैर मनाएगी ।आज़ादी के 65 साल पश्चात् भी देश में बहस नारियों के पहनावे को लेकर हो रही है यह इस देश की सबसे बड़ी विडम्बना है ।हम पहनावे पर जोर न देकर  के इस बात पर ध्यान दे की महिलाओं को सबल कैसे बनाया जाये ।ऐसे क्या -क्या उपाय है जिससे महिला अपने को सुरक्षित रख सके ।तब जाकर शायद हम इन अपराधों को रोक सकेंगे ।और तब सही मायनों में एक सभ्य भारत  का निर्माण संभव है ।यह तो सभी मानते है की जिस प्रकार गाड़ी बिना दो पहियों के नहीं चल सकती उसी प्रकार जीवन भी ।फिर जीवन के एक पहिये का इतना निरादर क्यों ? क्यों इतनी कुंठा है इस पहिये के प्रति ? क्या यह नारी होने की सजा है ?