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Saturday, November 23, 2013

रात के सन्नाटे में 
टिक टिक करती घड़ी की सुइयां 
अहसास कराती हैं 
अपने अकेलेपन का 
याद दिलाती हैं भूले बिसरे दिन 
और कहती हैं कि 
बहुत हो गया आ अब लौट चलते हैं 
उन बस्तियों में जहाँ से 
शुरू किया था तूने 
ये कभी ना ख़त्म होने वाला 
सफ़र ...................
श्वेत

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