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Thursday, April 7, 2011

इरोम शर्मीला: एक युगबोध या फिर अना हजारे |

"जिस धज से कोई मकतल पे गया, वो शान सलामत रहती है
ये जान तो आनी जानी है, इस जान की कोई बात नहीं "|
                                                                               फैज़ अहमद फैज़
                        जी हाँ इरोम शर्मीला चानू  एक ऐसा नाम जिसे शायद ही कोई ऐसा है जो नहीं जानता | १४ मार्च १९७२ में जन्मी शर्मीला iron lady of manipur  के नाम से मशहूर एक पत्रकार , सामाजिक कार्यकर्ता ,राजनीतिज्ञ ,तथा एक कुशल कवियत्री है |१ नवम्बर २००० को मालम मणिपुर के इम्फाल घाटी में शहर के एक बस स्टॉप पर अपनी बसों का इंतजार कर रहे दस लोगो को असम रायफल्स के जवानों द्वारा गोली मार दी गयी | हालाँकि असम रायफल्स के द्वारा यह दावा किया गया की  राज्य में सक्रिय आतंकवादियों पर यह गोली बारी की गयी थी जिसमे पार फायरिंग में ये नागरिक मारे गए |किन्तु वहा प्रत्यछ दर्शी स्थानीय लोगो ने इस बात का खंडन किया, इस घटना में एक ६२ वर्षीय वृधा तथा एक १८ वर्षीय सिनाम चंद्रमणि  भी मारे गए| इस मुद्दे को लेकर शर्मीला इरोम ने जो की यक़ीनन उस वक्त सिर्फ २८ साल की थी असम रायफल्स की  spaical एक्ट १९५८ के तहत को मणिपुर से हटाने की मांग को लेकर ४ नवम्बर २००० से अब तक अनशन पर है | सरकार ने शर्मीला पर आत्महत्या के प्रयास का आरोप लगाया जो भारतीय दंड संहिता के ३०९ अनुभाग के तहत गैरकानूनी  है उन्हें गिरफ्तार किया गया और बाद में उन्हें न्यायिक हिरासत में ले लिया गया तब से अब तक उनके अनशन को तुडवाने की बहुत बार कोशिश की जा चुकी है | उनके अनशन को लगभग १० साल पुरे हो चुके है लेकिन उनकी ज़िद है ............... जहाँ में अब जितने रोज़ अपना जीना होना है , तुम्हारी तोपे होनी है हमारा सीना होना है | इतने के बावजूद ऐसा क्या है जो उनकी मांग पूरी नहीं हो रही पूरे देश का उनको ऐसा समर्थ नहीं मिल रहा जैसा की अना हजारे को कही कुछ तो गड़बड़ है |     

Sunday, February 13, 2011

pyar

.हाथ पकड़ कर कहा था मेरा




जीवन भर साथ निभाऊंगा



वक्त आया तो वही सबसे दूर खड़ा था



जिसने कहा था तुम्हे छोड़ कर कभी



नहीं जाऊंगा




क्या हुआ ऐसा? जिसने उसे मजबूर किया



मेरा हाथ छोड़ने पर, मेरा साथ छोड़ने पर



मुझे यूं, भरी भीड़ में अकेला छोड़ने पर !



मै जानती हूँ ,वो यहीं है , आस पास मेरे



पर डरता है ज़माने से , कहीं मै यह न कह दूँ



की ले चलो मुझे , मुझे ले चलो वहा जहाँ तुम जा रहे हो



यूं मत रहो दूर मुझसे , मत तोड़ो दिल मेरा ,मत छोडो अकेला मुझे



हाँ ये सच है , वो डरता है ,



पर किसी और से नहीं , वो डरता है मुझसे




क्योंकि वो जानता है मै प्यार करती हूँ उससे



सिर्फ उससे



श्वेता













.









.

शाम

इस तरह है की हर एक पेड  कोई मंदिर है ,
कोई उजड़ा हुआ बेनूर पुराना मंदिर
ढूंढता है जो खराबी के बहाने कब से
चाक हर बाम ,हर एक दम का दमे आखिर है
आसमां कोई पुरोहित है जो हर बाम तले
जिसम पर रख मले , माथे पे सिन्दूर मले
सर्निगुं बैठा है चुचा ना जाने कब से
इस तरह  है की पसे पर्दा कोई साहिर है
जिसने आफाक पे फैलाया है यूँ सहर का दाम
दामने -वक्त से पैवस्त है यूँ दामने- शाम
अब कभी शाम बुझेगी ना अँधेरा होगा
अब कभी रात ढलेगी ना सबेरा होगा
आसमां आस लिए है की यह जादू टूटे
चुप की ज़ंजीर कटे ,वक्त का दमन छूटे
दे कोई शंख दुहाई कोई पायल बोले
कोई बुत जगे कोई सांवली घूंघट खोले
          फैज़ -अहमद -फैज़  

सफ़र- ऐ-फैज़

 सारा देश फैज़ अहमद फैज़ की जनम शती मन रहा है | एक ऐसा शाएर जिसने अपनी जिंदगी में कभी हार नहीं मानी| और जिस पर देशद्रोह का इलज़ाम भी लगा जिसने विस्थापन झेला |जेल कटी फिर भी लोगो की स्मृति में उनके लिए आज भी वही अपनापन और प्यार जिन्दा है प्रस्तुत है उनके कुछ कहे अनकहे नगमे
     बर्बते -दिल के तार टूट गए ,है जमी बोस राहतों के महल
    मिट गए किस्सा हा-ऐ -फिक्र -औ -अमल ,बज्मे हस्ती के जाम फूट गए
    छीन गया कैफे- कौसर-औ -तसनीम , ज़ह्माते -गिरिया औ -बुक -बे -सूद 
    हो चूका ख़त्म रहमतो का नुज़ूल ,बंद है मुद्दतों से बाबे -कबूल ,
    बे -नियज़े -दुआ है रब्बे -करीम ,बुझा गई शम्मे -आरजूए - ज़मील
    याद बाकि है बेकसी की दलील , इन्तजारे -फ़िज़ूल रहने दे
    राजे -उल्फत निबाहने वाले ,बारे -गम से कराहने वाले 
     काविशे -बे -हुसूल  रहने दे \ 
     

Friday, February 11, 2011

लम्हें

 धक् धक् करके छलक पड़ा दिल याद तुम्हारी जब भी आई
लम्हे लम्हें में तदपन है सिसक उठी अल्हढ़ तन्हाई |
           दर्दीली मुस्कान तुम्हारी सचमुच है
               पहचान तुम्हारी एक तुम्हारे बिना हमारी
                 सुनी लगती दुनिया सारी |
नील गगन में घिरी घटायें, चमकी बिजली बदली छाई
धक् धक् ...............................................................|
             कैसी हाय विवश मज़बूरी हर पलकें हर
               श्वांस अधूरी आह भरी मंजिल की
               दुरी होगी आस कभी क्या पूरी
तरसे नैना बरसे नैना बिरह अगन ना सके बुझाई
धक् धक् ...................................................................|
          शायद यह सपना रह जाये प्यासा मन अपना
            रह जाये कोई तो आये बहलाए प्यारा
                 संदेसा   कहलाये
फिर भी बार बार जाने क्यों भूल ना पता मन परछाईं
धक् धक् ......................................................................