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Friday, February 11, 2011

लम्हें

 धक् धक् करके छलक पड़ा दिल याद तुम्हारी जब भी आई
लम्हे लम्हें में तदपन है सिसक उठी अल्हढ़ तन्हाई |
           दर्दीली मुस्कान तुम्हारी सचमुच है
               पहचान तुम्हारी एक तुम्हारे बिना हमारी
                 सुनी लगती दुनिया सारी |
नील गगन में घिरी घटायें, चमकी बिजली बदली छाई
धक् धक् ...............................................................|
             कैसी हाय विवश मज़बूरी हर पलकें हर
               श्वांस अधूरी आह भरी मंजिल की
               दुरी होगी आस कभी क्या पूरी
तरसे नैना बरसे नैना बिरह अगन ना सके बुझाई
धक् धक् ...................................................................|
          शायद यह सपना रह जाये प्यासा मन अपना
            रह जाये कोई तो आये बहलाए प्यारा
                 संदेसा   कहलाये
फिर भी बार बार जाने क्यों भूल ना पता मन परछाईं
धक् धक् ......................................................................
      

2 comments:

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